जो हो यह कहानी है एक ऐसे इंडियन टेक कंपनी की जिसने Google और Microsoft जैसे सॉफ्टवेयर जॉइंट्स के सामने मजबूती से खड़े होने की हिम्मत दिखाई है कुछ साल पहले तक शायद ही किसी ने इस कंपनी का नाम सुना हो लेकिन आज दुनिया के 150 कंट्रीज में 100 मिलियन से भी ज्यादा यूज़र्स जोहo के प्रोडक्ट्स का इस्तेमाल कर रहे हैं खासकर Joho वर्कप्लेस एक ऐसा ऑल इन वन.
कम्युनिकेशन एंड कोलैबोरेशन टूल जो बिजनेस और टीम्स को उनका रोज का काम सीमलेसली मैनेज करने में मदद करता है आज सिर्फ छोटे बिजनेस ही नहीं बल्कि Amazon Zomato Tesla Ola और NKI जैसी बड़ी कंपनीज भी जोo की क्लाइंट हैं यहां तक कि इंडियन गवर्नमेंट भी जोo का सॉफ्टवेयर इस्तेमाल करती है लेकिन सवाल यह है कि सिर्फ 30 साल पहले शुरू हुई यह कंपनी $1 बिलियन डॉलर एंपायर.
में तब्दील कैसे हुई वो भी तब जब उसने ना तो वेंचर कैपिटल से फंड लिया और ना ही किसी इन्वेस्टर के सामने झुकी विज़न बिल्कुल क्लियर था कि अपना फ्यूचर अपने हाथ में रखना है और ऐसे अफोर्डेबल सॉफ्टवेयर टूल्स डेवलप करने हैं जो ना सिर्फ बड़े बिजनेसेस बल्कि छोटे और मिड साइज एंटरप्राइजेस के लिए भी फायदेमंद हो तमिलनाडु के एक छोटे से गांव से आने वाले.
श्रीधर वेंंबू ने जिस तरह से जोहो को खड़ा किया वो कहानी वाकई हैरान कर देने वाली है जोहो के ऑफिस किसी बड़े शहर की चकाचौंध में नहीं बल्कि तमिलनाडु के छोटे-छोटे गांव में है जहां से गांव के लोग अब ग्लोबल टेक्नोलॉजी का हिस्सा बन रहे हैं यहां डिग्री से ज्यादा टैलेंट की कदर की जाती है आज की वीडियो में हम जोहू की इंस्पायरिंग जर्नी के साथ यह भी जानेंगे.
कि आखिर यह जोहू करता क्या है और इनके प्रोडक्ट्स हमारे लिए यूज़फुल कैसे हैं जोहू की कहानी शुरू होती है 1968 में जब तमिलनाडु में श्रीधर बेंबू का जन्म हुआ श्रीधर पढ़ाई में काफी अच्छे थे शुरुआती पढ़ाई के बाद 1989 में वे आईआईटी मद्रास से इलेक्ट्रिकल इंजीनियरिंग में बीटेक कंप्लीट किए और फिर अमेरिका के प्रिंस्टन यूनिवर्सिटी चले गए जहां से उन्होंने.
पीएचडी की डिग्री हासिल की अब इतनी पढ़ाई के बाद किसी भी बड़ी कंपनी में जॉब पाना उनके लिए कोई मुश्किल काम नहीं था और हुआ भी वही साल 1994 में Qualcomm जैसी बड़ी टेक कंपनी ने उन्हें वायरलेस इंजीनियर के तौर पर हायर कर लिया एक अच्छी जॉब और कंफर्टेबल लाइफ आम इंसान की तरह सोें तो अब जिंदगी बिल्कुल सेट थी लेकिन श्रीधर ने एक आम इंसान की तरह नहीं सोचा उनके मन में.
एक सवाल हमेशा घूमता रहता था कि मैं अपने देश के लिए क्या कर रहा हूं क्या टेक्नोलॉजी सिर्फ अमेरिका के लिए बनी है क्या इंडिया में हम एक बड़ी सॉफ्टवेयर कंपनी नहीं बना सकते और फिर साल आया 1996 जब श्रीधर वेंंबू ने अपनी नौकरी छोड़ने का एक बड़ा और मुश्किल फैसला लिया लेकिन इंडिया लौटने का उनका फैसला अचानक नहीं हुआ इसके पीछे भी एक दिलचस्प कहानी थी.
दरअसल जब श्रीधर ने Qualcomm में जॉब शुरू की तो सिर्फ 3 महीने बाद ही उनके भाई कुमार वबू ने भी वहीं नौकरी ज्वाइन कर ली लेकिन कुमार का सपना हमेशा से खुद का बिजनेस करने का था श्रीधर के एक कलीग अवनीश अग्रवाल ने उन्हें आईडिया दिया कि उन्हें अपनी खुद की कंपनी शुरू करनी चाहिए और अवनीश की यह बात उनके दिमाग में बार-बार घूमती रही और उन्हें सोचने पर.
मजबूर करती रही इसी दौरान श्रीधर की मुलाकात टोनी थॉमस से हुई जो आईआईटी चेन्नई से बीटेक कर चुके थे और उस वक्त बेल लैब्स में काम कर रहे थे श्रीधर ने अपने भाई कुमार को टोनी से इंट्रोड्यूस कराया जिसके बाद ही कुमार अपनी जॉब छोड़कर चेन्नई वापस चले आए मतलब साफ था कि उनके बीच फ्यूचर के लिए कुछ सॉलिड प्लांस बनने लगे थे और आपको जानकर हैरानी होगी कि.
श्रीधर के दूसरे भाई शेखर भी अमेरिका के रचेस्टर से पीएचडी की पढ़ाई कर रहे थे लेकिन सिर्फ 3 महीने बाद ही सितेंंबर 95 में वह भी वापस आकर कुमार को ज्वाइन कर लिए साल था 1996 चारों जीनियस माइंड्स श्रीधर वेंंबू टोनी थॉमस कुमार और शेखर अपनी जॉब छोड़ चुके थे और खुद की एक सॉफ्टवेयर कंपनी शुरू करने की तरफ आगे बढ़ चुके थे और फिर चेन्नई में उन्होंने.
एडवेंट नेट नाम से एक कंपनी की शुरुआत की जो नेटवर्क मैनेजमेंट सॉफ्टवेयर बनाती थी दरअसल टोनी थॉमस इस फील्ड के एक्सपर्ट थे इसलिए उन्होंने कुमार वबू के साथ मिलकर कोडिंग और सॉफ्टवेयर डेवलपमेंट का काम संभाल लिया वहीं श्रीधर वेंंबू सेल्स एंड बिजनेस डेवलपमेंट का काम देखने लगे एडवेंट नेट की मार्केट में ना तो कोई पहचान थी और ना ही उनको सेल्स में कोई खास सक्सेस मिल.
पा रही थी लेकिन दोस्तों जल्द ही उनकी मेहनत रंग लाने लगी उन्हें पहला ब्रेक थ्रू मिला लास वेगास ट्रेड शो में जब एडमिंट नेट ने अपने प्रोडक्ट को शोकेस किया तो वहां उन्हें जबरदस्त रिस्पांस मिला जापान और अमेरिका की कई कंपनीज़ उनके अफोर्डेबल और इफेक्टिव सॉफ्टवेयर से काफी इंप्रेस हुए और ऑर्डर्स मिलने शुरू हो गए श्रीधर की सोच और काम करने का तरीका.
बिल्कुल अलग था इतने लिमिटेड रिसोर्सेज के साथ कोई भी इंसान एक बड़ी कंपनी खड़ा करने के बारे में सोच ही नहीं सकता आमतौर पर पहला कदम होता फंड जुटाना और जब श्रीधर बमबू जैसा टैलेंट सामने हो तो फंडिंग की दिक्कत होनी ही नहीं थी लेकिन उन्होंने कहा कि हम फंडिंग लेने की बजाय धीरे-धीरे ऑर्गेनिक तरीके से ग्रो करेंगे एडवेंट नेट ने ऐसा नेटवर्क मैनेजमेंट टूल्स बनाना.
शुरू किया जो बड़े सिस्टम्स को ट्रैक और ऑप्टिमाइज कर सके कंपनी बिना रुके एक ही प्रिंसिपल पर काम करती रही कि अच्छा प्रोडक्ट बनाओ लोग खुद आएंगे और हुआ भी वही धीरे-धीरे उनकी पहुंच बढ़ने लगी और साल 2000 तक एडविंट नेट एक छोटी लेकिन स्टेबल कंपनी बन गई कुछ रेगुलर क्लाइंट्स भी बन गए और थोड़ा रेवेन्यू भी आने लगा और फिर आया एक टर्निंग पॉइंट जब एक सवाल उठा.
कि क्यों ना बिजनेस के लिए एक पूरा सॉफ्टवेयर सूट तैयार किया जाए और यहीं से शुरुआत हुई जोहू की असली कहानी की दरअसल एडवेंट नेट ने मार्केट में एक बड़ा गैप ढूंढ लिया था उस वक्त छोटे और मझोले कारोबारियों को अपने बिजनेस के लिए सॉफ्टवेयर चाहिए था लेकिन मार्केट में अवेलेबल सॉफ्टवेयर्स काफी महंगे थे श्रीधर ने उन महंगे सॉफ्टवेयर्स की जगह एक.
अफोर्डेबल ऑप्शन देना शुरू किया जिसे मार्केट ने हाथों हाथ अपना लिया दोस्तों अब कंपनी उस पोजीशन में आ चुकी थी कि वह अपनी टीम को बड़ा करके अपने पोर्टफोलियो को एक्सपेंड कर सके इसलिए कंपनी ने अपना फोकस नेटवर्क मैनेजमेंट टूल से हटाकर क्लाउड बेस्ड बिजनेस टूल्स और सॉफ्टवेयर एज अ सर्विस यानी सैस पर करना शुरू कर दिया साल 2005 में एडवेंट नेट ने अपना.
फर्स्ट क्लाउड बेस्ड प्रोडक्ट जो राइटर ल्च किया जो इसके ऑनलाइन ऑफिस सूट का हिस्सा था इसके बाद 2006 में जोo सीआरएम और 2008 में जोहो मेल को ल्च किया गया ये दोनों प्रोडक्ट्स जोो वर्क प्लेस का हिस्सा है जो एक ऑल इन वन क्लाउड बेस्ड सूट है जिसमें आपको मिलता है जोहो मेल जोहो वर्क ड्राइव जोहो राइटर जोहो शीट जोहो शो जोहो क्लिक जोo कनेक्ट और जोहो.
मीटिंग यानी आपकी टीम को काम करने डॉक्यूमेंट्स मैनेज करने और रियल टाइम में एक दूसरे के साथ काम करने के लिए सब कुछ एक ही जगह मिल जाता है और दोस्तों जो वर्क प्लेस की खासियत जानकर आप हैरान रह जाएंगे सबसे बड़ी बात यह है कि जो वर्क प्लेस का पूरा सिस्टम प्राइवेसी फर्स्ट है यानी दूसरे प्लेटफॉर्म्स की तरह यहां ऐड दिखाकर या आपका डाटा बेचकर पैसे नहीं कमाए जाते.
जोo की कमाई का सिर्फ एक ही जरिया है आपका सब्सक्रिप्शन फीस समय के साथ जोहू के प्रोडक्ट्स को जबरदस्त पॉपुलैरिटी मिलने लगी उसकी सिंपलीसिटी एफिशिएंसी और अफोर्डेबिलिटी की वजह से अधिक से अधिक बिजनेस इसे अडॉप्ट करने लगे और जैसे-जैसे इसकी डिमांड बढ़ी कंपनी को एहसास हुआ कि जोहू उनका मोस्ट रिकॉग्नाइज्ड ब्रांड बन चुका है और इसी के चलते साल 2009 में.
कंपनी ने एक बड़ा फैसला लिया जब ऑफिशियली एडवेंट नेट का नाम बदलकर जोo कॉरपोरेशन कर दिया गया अगर जोo वर्क प्लेस के इंपॉर्टेंट टूल्स की बात करें तो सबसे पहला है जोo मेल जो स्ट्रांग स्पैम प्रोटेक्शन के साथ सिक्योर एंड ऐड फ्री ईमेल सर्विस प्रोवाइड करता है जोo वर्क ड्राइव टीम के लिए क्लाउड स्टोरेज एंड फाइल शेयरिंग प्लेटफार्म है साथ ही जोo.
राइटर जोो शीट और जोहो शो डॉक्यूमेंट स्प्रेडशीट और प्रेजेंटेशन बनाने और रियल टाइम कोलैबोरेशन की सुविधा देते हैं जोo क्लिक और जोo कनेक्ट इंस्टेंट मैसेजिंग और टीम नेटवर्क के लिए एक बेहतरीन ऑप्शन तो है ही साथ ही सिक्योर वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग और ऑनलाइन मीटिंग्स की जरूरत को जोहो मीटिंग पूरी कर देता है इसके अलावा Joho का स्मार्ट सर्च टूल जिया.
सर्च आपको 50 प्लस जोo एप्स में स्टोर डाटा को सिर्फ कुछ सेकंड्स में खोज कर दिखा देता है और दोस्तों यही नहीं Joho wt जोo वर्क प्लेस का एक ऐसा पासवर्ड मैनेजमेंट टूल है जिसे बिजनेस और इंडिविजुअल यूज़र्स के लिए सेफ पासवर्ड स्टोरेज एंड मैनेजमेंट के लिए बनाया गया है यह टूल पासवर्ड को इंक्रिप्ट करता है और टीम्स के बीच सिक्यर्ड पासवर्ड शेयरिंग.
की सुविधा देता है साथ ही यह सिंगल साइन ऑन फीचर्स भी प्रोवाइड करता है इसका मतलब आपका डाटा 100% सिक्योर एंड प्राइवेट रहता है आज के टाइम में किसी भी बिजनेस को सक्सेसफुली रन करने के लिए जरूरी है कि आपके पास एक ऐसा प्लेटफार्म हो जहां आपकी पूरी टीम कम्युनिकेशन कोलैबोरेशन और प्रोडक्टिविटी को एक साथ मैनेज कर सके और यही करता है जोहो वर्क प्लेस शुरुआत में.
छोटे बिजनेस जोहू के प्रोडक्ट्स इस्तेमाल करना शुरू किए और फिर बड़े नाम भी जुड़ते चले गए धीरे-धीरे जोहो का नाम इंडिया के बाहर भी फैलने लगा और यही रीजन है कि जोहूo वर्कप्लेस जैसे प्रोडक्ट्स जो कि जोहू के फ्लैशिप प्रोडक्ट्स में से एक हैं आज Google और Microsoft जैसी बड़ी कंपनीज़ को कम्युनिकेशन एंड कोलैबोरेशन सूट के मामले में टक्कर दे रहे हैं जोo की एक और.
खासियत है इसका मिक्स एंड मैच सब्सक्रिप्शन मॉडल यानी आपकी कंपनी में हर एंप्लई की जरूरत के हिसाब से अलग-अलग प्लान चुना जा सकता है जूनियर एंप्लाइजस के लिए बेसिक प्लान और मैनेजर्स या सीएक्सोस के लिए एडवांस प्लान इससे ना सिर्फ कॉस्ट की बचत होती है बल्कि हर किसी की जरूरत भी पूरी होती है और क्या आप जानते हैं एनआईसी इंडिया यानी इंडियन.
गवर्नमेंट का आईटी डिपार्टमेंट भी जोहो वर्क प्लेस का इस्तेमाल करता है और उनके अलग-अलग डिपार्टमेंट्स में 2 से 5 मिलियन यूज़र्स जोहो पर काम कर रहे हैं जो यह साबित करता है कि जोहो वर्क प्लेस एक रिलायबल और स्केलेबल प्लेटफार्म है दोस्तों जोहो का एक और बड़ा प्लस पॉइंट है इसका 24 *7 कस्टमर सपोर्ट जहां आपको बॉट्स नहीं बल्कि रियल ह्यूमंस आपकी मदद करते.
हैं और अगर आप किसी और प्लेटफार्म से जोहू पर शिफ्ट हो रहे हैं तो जोहू की टीम माइग्रेशन में भी आपकी पूरी मदद करती है धीरे-धीरे जोहू की कड़ी मेहनत का असर दिखने लगा और यह Google और Microsoft जैसे जॉइंट्स के सामने मजबूती से खड़ा हो गया लेकिन एक चीज जोहो को सबसे अलग बनाती है वो है कम कीमत में शानदार क्वालिटी स्टार्टअप्स के लिए अपनी टीम को बेहतर.
तरीके से कनेक्ट करना इजी और अफोर्डेबल हो गया यहां तक कि स्माल बिजनेसेस के साथ Amazon Tesla Zomato Polla और NKI जैसे मल्टीीनेशनल ब्रांड्स भी जोo के क्लाइंट्स बन गए आज जोहो को दुनिया के टॉप सॉफ्टवेयर सॉलशंस में गिना जाता है यहां तक कि इंडियन गवर्नमेंट भी अपने कई प्रोजेक्ट्स में जोहो के सॉफ्टवेयर पर भरोसा करती है फॉर एग्जांपल एनआईसी अपने सारे.
कम्युनिकेशन एंड कोलैबोरेशन के लिए जोहो वर्क प्लेस का इस्तेमाल करता है अब दोस्तों श्रीधर का सपना सिर्फ एक बड़ी कंपनी बनाने का नहीं था वह टेक्नोलॉजी को गांव-गांव तक ले जाना चाहते थे उनका असली सपना तो यह था कि भारत के छोटे शहरों और गांव में टेक्नोलॉजी और जॉब्स पहुंचे ताकि देश का विकास सिर्फ बड़े शहरों तक ना रुके इसलिए जब बाकी कंपनीज अपने हेड क्वार्टर्स.
बड़े शहरों में खोल रही थी तब जोहू ने तमिलनाडु के छोटे-छोटे गांव में अपने ऑफिस सेटअप किए श्रीधर वेंंबू का मानना था कि टैलेंट सिर्फ बड़े शहरों तक सीमित नहीं है बल्कि गांव में भी बेशुमार प्रतिभा छिपी है वहां जहां लोगों के पास शायद बड़े शहरों में जाने का चांस तक नहीं था चोहो ने उन्हें कोडिंग डिजाइनिंग और कस्टमर सपोर्ट की ट्रेनिंग दी डिग्री से ज्यादा.
स्किल्स को वैल्यू दी गई जो लड़का कभी खेतों में काम करता था वह आज ग्लोबल सॉफ्टवेयर बना रहा है जो लोग कभी टेक्नोलॉजी के बारे में सोच भी नहीं सकते थे आज वे दुनिया के बड़े प्रोजेक्ट्स का हिस्सा हैं देखा जाए तो जोहो ने सिर्फ एक कंपनी नहीं बनाई बल्कि गांव में एक नया रिवॉल्यूशन ला दिया और हां जोहो स्कूल के बारे में बताना तो मैं भूल ही गया यह कोई.
आम स्कूल नहीं बल्कि एक अनोखी जगह है जहां डिग्री से ज्यादा टैलेंट और स्किल्स की वैल्यू है यहां पर 10थ और 12th पास स्टूडेंट्स भी एडमिशन ले सकते हैं और सबसे बढ़िया बात यहां कोई फीस नहीं ली जाती बल्कि हर स्टूडेंट को हर महीने स्टाइपेंड दिया जाता है और 2 साल की ट्रेनिंग प्रोग्राम के दौरान स्टूडेंट्स को सीधे जोहो में प्रैक्टिकल एक्सपीरियंस भी दिया.
जाता है और सबसे खास बात आज जोहो में काम करने वाले 15% एंप्लई इसी स्कूल के स्टूडेंट रह चुके हैं तो फिर देर किस बात की अगर आप भी चाहते हैं एक अफोर्डेबल सिक्योर और ऑल इन वन वर्क प्लेस सॉल्यूशन तो अब टाइम आ गया है जोo के ऐप को ट्राई करने का डिस्क्रिप्शन में दिए लिंक पर क्लिक करके फ्री ट्रायल से शुरुआत करिए एंड डोंट फॉरगेट टू चेक आउट जोo वर्कप्लेस.
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