दुनिया के किसी भी देश में जाकर के बेच लेकिन निर्माण यहां कीजिए मैन्युफैक्चर यहां कीजिए लेट नोबडी हैव एनी डाउट दैट वी कैन बी ग्लोबली कंपट एट आवर ओन टर्म्स एंड दैट इज वई मेक इन इंडिया इज राइट ट एक तरफ मैन्युफैक्चरिंग ग्रोथ को बढ़ाना है एट द सेम टाइम उसका सीधा बेनिफिट हिंदुस्तान के नौजवानों को मिले उसे रोजगार मिले और उसका पर्विंग पावर बढ़े.
मैन्युफैक्चरर की संख्या बढ़ेगी मैनु फैक्चरिंग का ग्रोथ बढ़ेगा द चैलेज वा टू रिवर्स द ट्रें एंड प्रोवाइड मेंटल एनर्जी एंड सिंगल माड ये ऐसा चक्र है उस चक्र को आगे बढ़ाने की दिशा में एक महत्वपूर्ण काम आ य लाइन का [संगीत] [संगीत] स् दोस्तों 2014 में जब मोदी जी.
प्रधानमंत्री बने थे मोदी जी ने भारत के लिए एक बहुत ही जुनूनी सपना देखा जिसने पूरे देश में एक नई उम्मीद जगा दी और इस सपने का नाम था मेक इन इंडिया प्राइम मिनिस्टर मोदी टुडे लच ू मेक इन इंडिया कैंपेन ऑटोमोबाइल से लेकर के एग्रो वैल्यू एडिशन तक काम मेक इन इंडिया दोस्तों 10 साल पहले जब भारत में ये नारा गूंजा था तब ऐसा लगा था जैसे भारत की तकदीर बदलने वाली.
है जैसे हम दुनिया के सामने एक नया भारत पेश करने वाले हैं और हुआ भी कुछ ऐसा ही हम आज मोबाइल फोन से लेकर सोलर पैनल तक सेमीकंडक्टर चिप से लेकर इलेक्ट्रॉनिक गाड़ियों तक सब कुछ भारत में बना रहे हैं और पूरी दुनिया यह देख रही है कि भारत किस तरह से बदल रहा है और भारत किस तरह से आगे बढ़ रहा है द इंप्रिंट ऑफ मेक इन इंडिया इनिशिएटिव हैज बिकम विजिबल अक्रॉस.
सेक्टर्स इंक्लूडिंग एरियाज वेयर वी नेवर एवर ड्रेम ऑफ मेकिंग एन इंपैक्ट अ डेकेट लंग जर्नी हैज प्रोपेल्ड इंडिया टू बिकम अ ग्लोबल मैन्युफैक्चरिंग हब आई थिंक इन सम एरियाज वीव डन अ लॉट ए आ सेड इंफ्रास्ट्रक्चर वी डन अ लट ट्स बीन वेरी यूजफुल ब वी नीड टू चेक द अदर प्लेस लेकिन दोस्तों एक तरफ जहां हमारी सरकार और मीडिया मेक इन इंडिया की कामयाबी का जशन.
बना रही है सच तो यह है कि आज भी मेक इन इंडिया एक सक्सेस से ज्यादा एक फेलियर साबित हो रहा है प्रधानमंत्री जी मेक इन इंडिया की बात करते हैं पंजाब का जो किसान है शायद उससे ज्यादा मेक इन इंडिया कोई करता नहीं इसने देश को खड़ा किया है क्या जो गरीब मेक इन इंडिया करता है वो.
मेक इन इंडिया नहीं होता है वो मेक इन कुछ और होता है ये मेक इन इंडिया देश के लिए है हां सफल नहीं हुआ तो सफल होने के लिए क्या करना चाहिए सफल होने में क्या कमियां है उसकी चर्चा होनी चाहिए यह देखिए मेक इन इंडिया के जरिए मोदी सरकार चार बड़े मकसद हासिल करना चाहती थी नंबर वन भारत में फॉरेन डायरेक्ट इन्वेस्टमेंट बढ़ाना नंबर टू.
भारत की एक्सपोर्ट और इंपोर्ट का जो गैप है उसको कम करना नंबर थ्री मैन्युफैक्चरिंग को भारत की जीडीपी का 25 पर हिस्सा बनाना और बेरोजगारी को कम करना लेकिन स्टैट्स कुछ और ही कहती है यह ग्राफ बताता है कि अपने इंपोर्ट एक्सपोर्ट का जो गैप है व कितना बड़ा है और यह चार्ट में अगर आप देखो तो 2014 में अपना इंपोर्ट एक्सपोर्ट गैप जो था वो था 61 बिलियन.
डॉलर्स का यानी करीब-करीब 4.8 लाख करोड़ का यानी हमारे इंपोर्ट्स एक्सपोर्ट्स के मुकाबले 45 लाख करोड़ से भी ज्यादा थे लेकिन 2023 आते-आते यह गैप कम होने के बजाय बढ़ते बढ़ते 73 बिलियन डॉलर तक पहुंच गया यानी लगभग 5.8 लाख करोड़ तक पहुंच गया यानी हमारे इंपोर्ट एक्सपोर्ट का जो गैप है व पिछले 10 सालों में 12 बिलियन डॉलर्स यानी.
करीब-करीब 1 लाख करोड़ से बढ़ चुका है तो क्या मेक इन इंडिया कामयाब हुआ है नहीं अब यह देखिए मेक इन इंडिया के माध्यम से हम यह चाहते थे कि फॉरेन कंपनीज इंडिया में इन्वेस्ट करें लेकिन अगर आप इस ग्राफ को देखेंगे तो आपको यह समझ आएगा कि 2014 में 36 बिलियन डलर भारत में इन्वेस्ट किए गए और 5.3 बिलियन डॉलर भारत से डिस इन्वेस्ट किए गए लेकिन 2024 आते-आते जहां 71 बिलियन.
डॉलर भारत में इन्वेस्ट किए गए 44.4 बिलियन डॉलर्स डिस इन्वेस्ट भी किए गए तो कुल मिलाकर देखा जाए तो भारत में आज इन्वेस्टमेंट तो आ रहा है लेकिन बहुत ज्यादा डिस इन्वेस्टमेंट भी हो रहा है तो जो नेट इन्वेस्टमेंट है वो भारत में आज कम हो रहा है तो भारत में कुल मिलाकर देखा जाए तो पैसे आने की बजाय भारत से बाहर भी जा रहे.
हैं डिस्पाट ल द रारा स्ट्रांगेस्ट ग्रोइंग लार्ज इकॉनमी इन द वर्ल्ड एट एट फैक्ट नमी इ नॉट वर्किंग फर मेनी ऑफ आ इंडिया शेयर इन द ग्लोबल इकॉनमी एक्सपोर्ट शेयर इज वेरी मिनिमल इट्स जस्ट अबाउट 1.5 एंड देयर फॉर इंडिया नीड्स टू वर्क हार्ड टू पेनिट्रेट ग्लोबल मार्केटस द इंटीग्रेशन ऑफ इंडिया इनटू द ग्लोबल इकॉनमी वुड हैव बीन ऑन अ मोर सुपीरियर बेस.
इफ दिस इनिशिएटिव हैड सकसीडेड सैडली द मेक इन इंडिया प्रोग्राम नेवर रियली टूक ऑफ द वे इट वाज मेंट टू बी और एक तरफ जहां सरकार ने मैन्युफैक्चरिंग को जीडीपी का 25 पर हिस्सा बनाने का टारगेट रखा था आज मैन्युफैक्चरिंग हमारे जीडीपी का सिर्फ 15 से 17 पर हिस्सा है और आखिर में मोदी सरकार ने यह कहा था कि मैन्युफैक्चरिंग से भारत में 10 करोड़ जॉब्स क्रिएट होंगे.
लेकिन दोस्तों आज अफसोस की बात यह है कि हमारे मैन्युफैक्चरिंग से 2 करोड़ से भी कम जॉब्स क्रिएट हुए हैं हंड्रेड्स ऑफ एप्लीकेंट्स जस्ट अ हैंडफुल ऑफ ओपनिंग साइट्स लाइक दिस वन हैव बिकम कॉमन प्लेस इन इंडिया अराउंड 30 पर ग्रेजुएट्स इन इंडिया कैन नॉट फाइंड अ जॉब इट्स अमंग द हाईएस्ट रेट्स ग्लोबली बहुत ही ज्यादा मुश्किल है.
देखा जाए तो आजकल के दौर में हम लोग ग्रेजुएशन करने के बाद इधर-उधर भटकते रहते हैं पर कहीं जॉब नहीं मिलती है तो इन स्टैट्स को देखकर यह बात तो साफ है कि मेक इन इंडिया काफी हद तक फेल हो गया है पूरी तरह से नहीं लेकिन काफी हद तक फेल हो चुका है अब लेफ्ट वाले यह कहेंगे कि यह सब बीजेपी की गलती है और राइट वाले यह कहेंगे कि मोदी जी तो भगवान है और चाहे आंकड़े.
कुछ भी कहे बीजेपी ने कांग्रेस से ज्यादा काम किया है लेकिन दोस्तों सच तो यह है कि ना तो इस के लिए बीजेपी जिम्मेदार है ना ही कांग्रेस असली जिम्मेदार है तो वो है हमारा सिस्टम जिसमें कुछ ऐसे वायरस हैं जो मेक इन इंडिया को कमजोर कर रहे हैं और चाहे कोई भी पार्टी सत्ता में हो अगर हम इन वायरस को नहीं मिटाए तो हम हमेशा फेल होते रहेंगे तो दोस्तों हमें यह नहीं.
पूछना चाहिए कि बीजेपी सक्सेसफुल हुई या नहीं हमें यह पूछना चाहिए कि भारत सक्सेसफुल क्यों नहीं हो पा रहा और यह वो सवाल है जिसका जवाब मेस्ट्री मीडिया कभी नहीं देती इसीलिए दोस्तों आप आज मेक इन इंडिया के 10 साल पूरे होने के मौके पर हमने भारी रिसर्च करते हुए शशि सर से लेकर निर्मला मैम तक गडकरी सर से लेकर संजीव स्याल तक सभी इंपॉर्टेंट डिसीजन मेकर से.
बात किया और एक कंप्लीट केस स्टरी तैयार किया है इन सवालों का जवाब ढूंढने के लिए कि मेक इन इंडिया आज फेल क्यों हो रहा है हमारे मैन्युफैक्चरिंग में ऐसी कौन सी प्रॉब्लम्स हैं जिसकी वजह से इंडिया का डेवलपमेंट रुका हुआ है भारत चाइना और वियतनाम जैसे देशों से आज पीछे क्यों होता जा रहा है और सबसे इंपॉर्टेंट सवाल यह है कि अगर इस इस प्रॉब्लम को सॉल्व करना हो.
तो हमें और मोदी सरकार को क्या करना होगा दोस्तों आपने काफी सारे कोर्सेस देखे होंगे जो कहते हैं कि हम आपको इन्वेस्टमेंट मनी मैनेजमेंट और पैसा ग्रो करना सिखाएंगे लेकिन इन कोर्सेस का प्राइस काफी हाई होता है और इनमें कुछ नया सीखने को नहीं मिलता इसीलिए जरोदा ने एक जबरदस्त इनिशिएटिव शुरू किया है जिससे वह हर किसी को इंडिया में फ्री फाइनेंशियल एजुकेशन.
देना चाहते हैं वार सिटी लाइफ इंडिया का पहला लर्न माय डूइंग एक्सपीरियंस है जो आपको अपने वेल्थ को ग्रो करने में मदद करेगा तो आज ही रजिस्टर करो इस हफ्ते के फ्री क्लास के लिए द लिंक इज इन द डिस्क्रिप्शन तो चलिए शुरू करते हैं सबसे पहले यह समझते हैं कि मेक इन इंडिया भारत के लिए इतना इंपॉर्टेंट क्यों है आज हम सब कुछ भारत में ही मैन्युफैक्चर क्यों करना.
चाहते हैं दोस्तों इसका राज यह है कि मैन्युफैक्चरिंग हमारी इकोनॉमी को तीन ऐसे सुपर पावर्स देता है जो एक सर्विस बेस्ड इकोनॉमी नहीं दे पाता चलिए इसको गौर से समझते हैं दोस्तों आईटी सर्विसेस जैसी जो सर्विस इंडस्ट्री है वो ज्यादातर स्किल्ड और सेमी स्किल्ड लोगों को ही जॉब्स दे पाती है लेकिन टेक्सटाइल जैसी मैन्युफैक्चरिंग इंडस्ट्री जो है वो.
स्किल्ड सेमी स्किल्ड और अनस्किल्ड तीनों तरह के लोगों को रोजगार दे सकती है और ये वो लोग हैं जो हमारे पॉपुलेशन का 50 पर से भी ज्यादा हिस्सा बनाते हैं और अगर आप इस चार्ट को देखें तो आपको यह समझ आएगा कि आईटी इंडस्ट्री हमारे जीडीपी में 7.5 कंट्रीब्यूट करती है जबकि टेक्सटाइल इंडस्ट्री सिर्फ 2.3 पर कंट्रीब्यूट करती है लेकिन रोजगार के मामले में आईटी सर्विस.
इंडस्ट्री कुछ 50 लाख लोगों को एंप्लॉय करती है जबकि टेक्सटाइल इंडस्ट्री 45 करोड़ लोगों को जॉब देती है तो एक स्किल्ड इंजीनियर से लेकर एक अनपर्ड क्लर्क तक सबको मैन्युफैक्चरिंग में जॉब मिल सकती है और यह इतनी बड़ी बात इसलिए है दोस्तों क्योंकि मैन्युफैक्चरिंग इंडस्ट्री हमें हमारे गरीब भाई बहनों को रोजगार देने में मदद करती है जिससे वह गरीबी से ऊपर उठ.
सकते हैं यह है मैन्युफैक्चरिंग की पहली खास बात मैन्युफैक्चरिंग की दूसरी खास बात यह है कि सर्विस इंडस्ट्रीज रिसेशन से ज्यादा प्रभावित होती है जबकि मैन्युफैक्चरिंग इंडस्ट्रीज पर इतना असर नहीं होता जैसे 2020 के रिसेशन में फाइनेंशियल सर्विसेस और मार्केटिंग सर्विसेस को तो बहुत भारी नुकसान हुआ लेकिन नेसले प्रॉक्टर एंड गमल और यूनिलीवर.
जैसी जो कंपनीज थी उन पर इतना असर नहीं पड़ा क्यों क्योंकि जब रिसेशन होता है तब लोग फाइनेंशियल और मार्केटिंग सर्विसेस पर खर्चा कम कर सकते हैं लेकिन रेजर्स डिटर्जेंट और बेबी फूड जैसी जरूरी चीजों पर हम हमेशा खर्चा करते रहेंगे इसीलिए कहते हैं कि मैन्युफैक्चरिंग हमें मुश्किल वक्त में भी स्टेबिलिटी देता है यह है मैन्युफैक्चरिंग की दूसरी खास बात और.
मैन्युफैक्चरिंग की तीसरी खास बात यह है कि मैन्युफैक्चरिंग से एक्सपोर्ट बढ़ाना बहुत आसान हो जाता है क्योंकि मैन्युफैक्चरिंग को आसानी से स्केल किया जा सकता है जबकि सर्विस कंपनी को स्केल करना काफी मुश्किल होता है मतलब आज अगर मुझे 10000 रेजर्स की जगह 20000 रेजर्स का प्रोडक्शन करना हो तो मुझे सिर्फ एक्स्ट्रा शिफ्ट लगेगा और कुछ बड़े मशीनस.
लगेंगे लेकिन अगर मुझे मार्केटिंग सर्विस में एक की जगह 10 प्रोजेक्ट करना हो तो मुझे अपने प्रोजेक्ट के साथ-साथ लोग भी एक्स्ट्रा लगेंगे तो मैन्युफैक्चरिंग को स्केल करना काफी आसान है लेकिन सर्विस इंडस्ट्री को स्केल करना काफी मुश्किल है तो मैन्युफैक्चरिंग हमें कौन सी सुपर पावर्स देता है एंप्लॉयमेंट स्केल और रिसेशन से बचने की ताकत इसीलिए दोस्तों.
2014 में मोदी जी ने भारत के लिए एक बहुत बड़ा सपना देखा जिसने पूरे देश में एक नई उम्मीद जगा दी और इस सपने का नाम था मेक इन इंडिया तो सवाल ये उठता है कि जब सरकार मैन्युफैक्चरिंग को लेकर इतनी पैशनेट है जब सरकार टैक्सेस कम करने और बिजनेसेस को इनवाइट करने के लिए इतनी सारी स्कीम्स ला रही है जब मोदी जी खुद टैक्स ब्रेक्स और लैंड बैंक्स के साथ बिजनेसेस को इंडिया.
आने के लिए निमंत्रण दे रहे हैं तो फिर हम कहां फेल हो रहे हैं हमारे पास इतनी बड़ी पॉपुलेशन है एक अग्रेसिव और कैपिट कि सरकार है और इतनी सारी कंपनीज चाइना से बाहर आना चाहती है तो फिर प्रॉब्लम क्या है दोस्तों इंडिया के विकास में सबसे बड़ी रुकावट है सरकारी सिस्टम और करप्शन यह वह दीमक है जो हमारे सिस्टम को अंदर ही अंदर खाए जा रहा है आज भारत में बिजनेस शुरू.
करना इतना मुश्किल है कि लोग तो कोशिश करते करते ही हार मान लेते हैं इनफैक्ट शशि सर ने भी हमारे पॉडकास्ट में इसी बात पर जोर दिया प्रोसेसेस ऑफ गवर्मेंट एवरी फाइल रिक्वायर्स फोर और फाइव सिगनेचर्स इन पर्टिकुलर ऑर्डर ऑफ सीक्वेंस वन गाय इ ऑन लीव सिक और ट्रेवलिंग समर ऑन ड्यूटी व्हाट एवर द फाइल जस्ट सिट्स अटिल ही कम्स बैक एंड साइंस दैट फाइल इट्स नो सरप्राइज देन.
दैट व्हेन मोदी टेक्स ऑफिस ही जज गिवन इट अ फ्री हैंड इन एन एफर्ट टू कट रेड टेप हमने लाइसेंस परमिट राज को जर से खत्म करने का प्रण लिया है रेड टैप ह हटाकर हम रेड कार्पेट बिछा रहे हैं सीधी बात में कहूं तो इंडिया में बिजनेस शुरू करना कोई आसान काम नहीं है कंपनी रजिस्ट्रेशन से लेकर रेगुलेटरी अप्रूव्स और लैंड एक्विजिशन तक हर स्टेट पर आपका सामना होता.
है रेड टेप से यानी सरकारी बाबू से इंडिया में कंपनी रजिस्टर करने में सिर्फ 15 से 30 दिन लगते हैं लेकिन ऑपरेशंस शुरू करने में ढ़ साल से 5 साल तक का भी वक्त लग सकता है लेकिन अगर आप यही प्रोसेस वियतनाम में देखो तो वियतनाम में यह सारा काम सिर्फ 6 महीनों में हो जाता है अब जरा सोचिए अगर आपके फैक्ट्री से रोज ₹10 लाख का रेवेन्यू जनरेट कर सकते हैं तो इंडिया.
में एक महीने की डीले की वजह से आपको 3 करोड़ का नुकसान होगा और एक साल में 36 करोड़ का नुकसान होगा और बड़े बिजनेसेस के लिए यह नुकसान हजारों करोड़ में हो सकता है अब आप मुझे बताओ अगर आपके पास वियतनाम में बिजनेस शुरू करने का ऑप्शन है तो क्या आप इंडिया में हज करोड़ का नुकसान उठाने का रिस्क लोगे नहीं ना यही वजह है कि कई सारी कंपनीज इंडिया के बदले वियतनाम जा.
रही है यहां तक कि टेस्ला जैसी जो बड़ी कंपनी है उसको भी इंडिया आने में दिक्कत हो रही है 2019 में अगर आपको याद हो तो इलन मस्क ने एक ट्वीट ट्वीट में कहा था कि वो अगले साल इंडिया आएंगे इफ द न मस्क इज रेडी टू मैनफोर्स द वेंडर्स आर अवेलेबल वी हैव गट द ऑल टाइप ऑफ टेक्नोलॉजी एंड बिकॉज ऑफ दैट ही कैन रिड्यूस द कॉस्ट बट आवर रिक्वेस्ट.
टू हिम इज दैट यू कम टू इंडिया स्टार्ट मैन्युफैक्चरिंग हियर इंडिया इज अ ह्यूज मार्केट द एक्सपोर्ट अवेलेबिलिटी एवरीथिंग पोर्ट्स आर अवेलेबल दे कैन मेक देयर एक्सपोर्ट फ्रॉम इंडिया एंड ही इज वेलकम ही इज वेलकम इन इंडिया वी डोंट हैव एनी प्रॉब्लम लेकिन आज 5 साल हो गए हैं और टेस्ला दूर दूर तक दिखाई नहीं दे रहा यह है इंडिया का पहला प्रॉब्लम दूसरा.
प्रॉब्लम हमारे पास है एनवायरमेंटल क्लीयरेंस का जो इंफ्रास्ट्रक्चर ग्रोथ और बिजनेस ऑपरेशंस दोनों को भी रोक के रखता है और गडकरी सर ने भी हमारे पॉडकास्ट में इसी बात का जिक्र किया था देखिए मैं जब मंत्री बना तो करीब 406 प्रोजेक्ट 385000 करोड़ के बन पड़े थे क्यों सर लैंड नहीं थी यूट शिफ्टिंग नहीं था डिसीजन नहीं होते थे रेलवे क्लीयरेंसस नहीं थी बैंकों में.
अकाउंट एनपीए बन गए काम बंद पड़ा कर्जे के बोजे में कांट्रैक्टर फंस गया ऐसे अनेक रीजन थे एग्जांपल के लिए आप दिल्ली मेट्रो का केस ले लो दिल्ली मेट्रो का लाजपत नगर से साके जीी ब्लॉक का जो कॉरिडोर है उसका काम कम से कम छ महीनों से डिले हो चुका है और जो प्रोजेक्ट 2024 में पूरा होने वाला था वो अब 2025 में पूरा होगा और गुजरात में हालत इतनी खराब है कि अगस्त 2024 तक.
हजार से ज्यादा प्रोजेक्ट्स एनवायरमेंटल अप्रूवल की व वजह से डिले हो चुके हैं और ये डिलेज ना सिर्फ टाइम वेस्ट करते हैं बल्कि बिजनेसेस को करोड़ों रुपए का नुकसान भी पहुंचाते हैं यह है दोस्तों मेक इन इंडिया की दूसरी बड़ी समस्या अगर आपको यह समझ आ गया तो अब बात करते हैं सबसे बड़ी समस्या की जिसका नाम है लैंड एक्विजिशन अगर आपको लैंड एक्विजिशन के प्रॉब्लम के.
बारे में नहीं पता तो हम आपको बता दें कि इंडिया में इंडस्ट्रियल यूज या हाईवेज के लिए जमीन लेना बहुत-बहुत मुश्किल काम है लीगल डिस्प्यूट्स कंपनसेशन इश्यूज और गवर्नमेंट डिपार्टमेंट से अप्रूवल लेने में सालों साल लग जाते हैं और इसका असर इंटरनेशनल बिजनेसेस और इंफ्रास्ट्रक्चर प्रोजेक्ट्स दोनों पर पड़ता है और इसका बेस्ट एग्जांपल है पोस्को पको एक साउथ.
कोरियन स्टील कंपनी थी जो इंडिया में इन्वेस्ट करना चाहती थी उन्होंने 2005 में ही ओड़ीशा में एक स्टील प्लांट लगाने के लिए 12 बिलियन डॉलर्स यानी करीब-करीब 1 लाख करोड़ इन्वेस्ट करने का प्लान किया था यह इंडिया के लिए एक बहुत बड़ी फॉरेन इन्वेस्टमेंट अपॉर्चुनिटी थी लेकिन हुआ क्या यह प्रोजेक्ट 10 साल तक आई ट 10 साल तक लैंड एक्विजिशन और एनवायरमेंटल.
क्लीयरेंसस में फसा रहा और 2017 में यानी 12 साल की लंबी लड़ाई के बाद पको ने यह प्रोजेक्ट छोड़ दिया और इंडिया से ही पको चला गया पको स्टॉल प्रोजेक्ट बिल्ड अ स्टील मिल इन द इंडियन स्टेट ऑफ एडिश द बिगेस्ट फॉरेन डायरेक्ट इन्वेस्टमेंट एवर इन इंडिया इज यट टू टेक ऑफ द प्रोजेक्ट वाज लांच इन 2005 बट हैज बीन डिलेड फॉर रली ना यर्स ड्यू टू लैंड एक्विजिशन.
इश्यूज एंड एनवायरमेंटल कंसर्न्स लार्जेस्ट फॉरेन डायरेक्ट इन्वेस्टमेंट प्रोजेक्ट पॉस्को इज पैरालाइज बाय प्रोटेस्टर्स हु आर डिटरमिन नॉट टू अलाउ द टेकओवर ऑफ देयर लैंड तो आप समझ रहे हो 1 लाख करोड़ का प्रोजेक्ट 12 साल की मुश्किलें झेलने के बाद भारत छोड़कर चला गया अब आप मुझे बताओ अगर आप एक साउथ कोरियन कंपनी हो और आपने पको को इतनी.
तकलीफ से गुजरते हुए देखा है तो क्या आप सपने में भी इंडिया आने का सोचोगे नहीं ना इसी तरह दोस्तों लैंड एक्विजिशन और एनवायरमेंटल क्लीयरेंस की वजह से भारत को बहुत भारी नुकसान हो रहा है और सिर्फ फॉरेन कंपनीज ही नहीं बल्कि इंडिया के अपने इंफ्रास्ट्रक्चर प्रोजेक्ट्स में भी लैंड एक्विजिशन की वजह से बहुत प्रॉब्लम्स हो रही है 34800 किमी के राजमार्ग बनाने.
के लिए 2015 में जिस भारत माला परियोजना को शुरू किया गया था उसके तहत अब तक सिर्फ 23 फ ही काम पूरा हो सका है बट इन 2023 द मिनिस्ट्री एक्चुअली इंक्रीज द कॉस्ट टू ₹ 2 करोड़ पर किलोमीटर फॉर 2631 किमी यह देखो भारत माला फेज वन प्रोजेक्ट जो 2022 में पूरा होने वाला था अब 2027 तक डिले हो चुका है और उसकी कॉस्ट 5.35 लाख करोड़ से बढ़कर.
10.6 लाख करोड़ तक पहुंच गई है और मुंबई अहमदाबाद की जो बुलेट ट्रेन प्रोजेक्ट है वो भी 2023 की बजाय 2028 में अब पूरा होगा और उसकी कॉस्ट जो है वो 1 लाख करोड़ से बढ़कर करीब-करीब 2 लाख करोड़ हो गई है और ये जो 1 लाख करोड़ का एक्स्ट्रा खर्चा है ये सारा पैसा आपके और मेरे जेब से जा रहा है और इसी बात पर दोस्तों निर्मला मैम ने भी हमारे पॉडकास्ट में बात किया आफ्टर ऑल.
द सेम बुलेट ट्रेन वाज अप्रूव्ड इन महाराष्ट्र एज वेल बट व्हाट हैपेंड विद अ चेंज ऑफ गवर्नमेंट दैट पर्टिकुलर एग्रीमेंट और अंडरस्टैंडिंग वाज पुट इन द बैक बर्नर तो आप समझ रहे हो इसीलिए मैं कहता हूं कि यह सारे प्रॉब्लम्स एक दीमक की तरह है जो भारत की अर्थव्यवस्था को अंदर ही अंदर खाए जा रहे हैं लेकिन अगर आप वियतनाम को देखें तो वहां लैंड एक्विजिशन.
पॉलिसीज इतनी स्ट्रीम लाइंड है कि 2022 ततक ये प्रोजेक्ट्स ऑन एन एवरेज 42 मंथ्स यानी 35 साल से पीछे चल रहे हैं इसी तरह दोस्तों लैंड एक्विजिशन और एनवायरमेंटल सर्टिफिकेशंस की वजह से इंडिया की ग्रोथ स्लो डाउन हो रही है अगर यह बात आपको समझ आ गया तो अब बात करते हैं एक और बड़ी समस्या की जिसका नाम है इंफ्रास्ट्रक्चर दोस्तों इंडिया में रेल.
रोड्स ट्रेंस और पोर्ट्स सबकी हालत इतनी खराब है कि मैं आपको क्या ही बताऊं एग्जांपल के लिए ये देखो इंडिया में गुस ट्रेंस की एवरेज स्पीड सिर्फ 25 किमी पर आवर है जबकि चाइना में यह स्पीड 45 किमी पर आवर है यानी हमारे गुड्स ट्रेंस एक एक्टिवा से भी धीरे चलते हैं तो आप समझ रहे हो लाखों करोड़ों का जो माल है वो activa-i.
में भी ये स्पीड 40 टू 60 किमी पर आवर है अब चलते हैं पोर्ट्स की तरफ दोस्तों इंडिया के पास वियतनाम से ज्यादा लंबी कोस्टलाइन और ज्यादा पोर्ट्स भी हैं लेकिन फिर भी हम वियतनाम से काफी पीछे चल रहे हैं इंडिया के मुंबई पोर्ट में शिप्स को आने-जाने में 2 दिन से ज्यादा वक्त लगता है जबकि वियतनाम के सागौन पोर्ट में शिप्स को आने जाने में सिर्फ 21.6 आवर्स यानी 22.
घंटों से भी कम टाइम लगता है तो वियतनाम में शिप्स इंडिया के मुकाबले दुगनी स्पीड से आते जाते हैं इसी तरह इंडिया में शिपिंग कंटेनर्स को डेपो में 22 दिन रुकना पड़ता है जबकि वियतनाम सिर्फ 9 दिन रुकना पड़ता है और ये जो 13 दिन का फर्क है ना यह कंपनीज के ट्रांसपोर्टेशन कॉस्ट को करोड़ों रुपए से बढ़ा देता है और अगर हम इंडिया की पोर्ट कैपेसिटी की बात करें तो.
दुनिया के टॉप 10 पोर्ट्स में से सात पोर्ट्स सिर्फ चाइना में है और इंडिया का जो जेएनपीटी पोर्ट है वो है 35th स्पॉट में और 2020 में चाइना के निंबो जोष पोर्ट ने 1.17 बिलियन टंस का कार्गो हैंडल किया जबकि इंडिया का सबसे बड़ा पोर्ट मुंद्रा पोर्ट ने सिर्फ 180 मिलियन मेट्रिक टंस का कार्गो हैंडल किया यानी हमारा जो मुंद्रा पोर्ट है वो चाइना से कम से कम पांच गुना.
पीछे चल रहा है और ऐसा नहीं है कि सरकार पोर्ट्स बनाना नहीं चाहती सरकार पोर्ट्स बनाना चाहती है लेकिन क्लीयरेंसस अप्रूव्स और प्रोटेस्ट की वजह से 70 पर इंफ्रास्ट्रक्चर प्रोजेक्ट्स डिले हो जाते हैं और यही डीले दोस्तों हमारे प्रोग्रेस को रोक के रखता है ये है दोस्तों इंडिया का इंफ्रास्ट्रक्चर प्रॉब्लम और आखिर में बात करते हैं एक ऐसी प्रॉब्लम की जिसके.
बारे में हम सब जानते हैं और वो है इंडिया का स्किल प्रॉब्लम दोस्तों आपको जानकर हैरानी होगी कि इंडिया के सिर्फ 2 पर वर्कफोर्स के पास प्रोफेशनल स्किल्स का सर्टिफिकेट है और यह परसेंटेज साउथ कोरिया में 96 पर है जापान में 80 पर है चाइना में 40 पर है और वियतनाम में भी 12 पर है लेकिन इंडिया में ये परसेंटेज सिर्फ 2 पर है और इंडिया का एजुकेशन सिस्टम इतना खराब.
है कि स्किल इंडिया रिपोर्ट 2024 के मुताबिक 35 पर से भी ज्यादा बीटेक ग्रेजुएट्स 70 पर से भी ज्यादा पॉलिटेक्निक ग्रेजुएट्स और 60 पर आईटीआई ग्रेजुएट्स भारत में बेरोजगार हैं और इन सारी समस्याओं का जो नतीजा है वो है बेरोजगारी जहां हम 10 करोड़ लोगों को जॉब देना चाहते थे आज हम दो करोड़ लोगों को भी मैन्युफैक्चरिंग में जॉब्स नहीं दे पाए.
हैं ये है दोस्तों मेक इन इंडिया के प्रॉब्लम्स जिसकी वजह से भारत को बहुत भारी नुकसान हो रहा है तो अब सवाल ये उठता है कि इसका सलूशन क्या है दोस्तों सलूशन है और काफी सिंपल भी है इसको मैं चार पॉइंट सिंपलीफाई करता हूं और मैंने हर पॉइंट पर एक अलग वीडियो बनाया है जिसको आप डिस्क्रिप्शन में जाकर देख सकते हैं नंबर वन हमें ईज ऑफ डूइंग बिजनेस लॉस को भारत.
में बेहतर बनाकर फॉरेन इन्वेस्टमेंट को बढ़ाना होगा और यह हमने हमारे गुजरात की वीडियो में कवर किया है लिंक मैं आपको डिस्क्रिप्शन में दे दूंगा नंबर टू हमें गुजरात की तरह लैंड बैंकिंग सिस्टम के जरिए लैंड एक्विजिशन की समस्या का समाधान करना होगा इसके ऊपर भी मैं केस स्टडी बना चुका हूं जिसको आप डिस्क्रिप्शन में जाकर देख सकते हो नंबर थ्री हमें बेहतर.
इंफ्रास्ट्रक्चर की जरूरत है जिसके लिए लैंड बैंक्स इंपॉर्टेंट है एंड लास्टली हमें लेबर और अप स्किलिंग की समस्या का समाधान करना होगा इंडिया ने स्किल इंडिया इनिशिएटिव के जरिए इस दिशा में काम तो किया है लेकिन अभी उसे बड़े स्केल पर इंप्लीमेंट करना बहुत बहुत जरूरी है और इसके साथ-साथ हमारे स्टेट और सेंट्रल गवर्नमेंट्स को मिलकर बिना किसी राजनीतिक.
भेदभाव के देश के विकास के लिए काम करना होगा जिससे भारत में राजनीति कम और तरक्की ज्यादा हो ये है दोस्तों मेक इन इंडिया के प्रॉब्लम्स एंड सॉल्यूशंस जिसकी वजह से भारत आज कामयाब नहीं हो पा रहा है लेकिन अगर हमने सरकार पर जोर दिया तो इन सारे प्रॉब्लम्स का सलूशन भी आएगा और भारत आगे भी बढ़ेगा दैट ऑल फ्रॉम माय साफ टॉर टुडे गाइ अगर आपको यह वीडियो पसंद आया तो प्लीज.
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