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Parle G ❤️ A Heart Touching Success Story | Case Study | History | World’s No.1 Biscuit | Live Hindi

Parle G ❤️ A Heart Touching Success Story | Case Study | History | World’s No.1 Biscuit | Live Hindi

दोस्तों क्या आपको पता है बिस्किट्स को हिंदू धर्म के लोग खाने से दूर भागते थे पर क्यों यह तो हम आगे जानेंगे लेकिन पार्ले जी ने आने के बाद लोगों की मानसिकता को बदला और अब यह हम सभी के दिलों पर राज करता है तो दोस्तों सुबह की चाय से लेकर ऑफिस के गॉसिप्स तक हर कदम पर हमारा साथ देने वाले इस बिस्किट ब्रांड को कैसे एक गरीब टेलर ने बनाया आज के इस.

वीडियो में हम सब कुछ डिटेल में जानने वाले हैं और हां हम यह भी जानेंगे कि कैसे पार्ले ने अपना सीक्रेट फार्मूला सभी को बांट दिया और किस तरह इस ब्रांड ने करीब 255 सालों तक अपने बिस्किट के पैकेट का रेट ₹1 भी नहीं बढ़ाया पर्ले जीी शायद ही कोई ऐसा भारतीय होगा जिसने चाय में यह बिस्किट डुबोकर ना खाया हो और हां कमाल की बात तो यह है कि जितना लगाव आपको इस.

बिस्किट से है ना उतना ही हमारे मम्मी पापा और दादा-दादी को भी है यही वजह है कि इसे एक बिस्किट नहीं बल्कि एक इमोशन कहा गया है और इस इमोशन की नीव रखी गई थी ब्रिटिश राज में जब बिस्किट्स खाना हम भारतीयों के लिए एक सुनहरे सपने से ज्यादा कुछ भी नहीं था लेकिन वो कैसे इसे समझने के लिए हमें लेट 19th सेंचुरी में चलना होगा एक्चुअली उस टाइम पर मार्केट में.

गिने-चुने कुछ बड़े-बड़े दुकानों में बिस्किट से भरा हुआ एक खास किस्म का चौकोर सा दिखने वाला यह टीन का डिब्बा मिलता था जिस पर बड़े-बड़े टेक्स्ट में लिखा होता था हंटले एंड पार्स इस डिब्बे को दुकान से खरीदकर सीधे अंग्रेजों के महल में पहुंचा दिया जाता था जिसे बड़े-बड़े अंग्रेजी अफसर सुबह और शाम की चाय की चुस्कियां के साथ में एंजॉय किया करते थे और इंडियंस.

उसे दूर से ही देखकर सोचा करते थे कि आखिर ये यह कौन सी नई जाद है जल्दी यह बिस्किट्स हमारे राजा महाराजा और कुछ अमीर इंडियंस के घरों तक भी पहुंच गए लेकिन इनकी कीमत इतनी ज्यादा थी कि मिडिल क्लास या गरीब लोग इसे खरीदने के बारे में सोचने से भी कतराते थे अब यह बिस्किट अमीरों की चाय का साथी तो बन गया था लेकिन बहुत से अपर क्लास हिंदू जो इसे अफोर्ड तो कर सकते.

थे फिर भी अपने घर में लाने या फिर खाने से दूर भागते थे क्योंकि इन बिस्किट्स को बनाने के लिए बेकर्स अंडे का इस्तेमाल किया करते थे लेकिन बाद में इस समस्या का समाधान लेकर आए ला राधा मोहन जिन्होंने 1998 के दौरान दिल्ली में हिंदू बिस्किट्स नाम की एक कंपनी की शुरुआत की जिसका मकसद हिंदुओं के बीच बिस्किट्स को पॉपुलर बनाना था इस काम के लिए कंपनी ने सिर्फ.

ब्राह्मणों और अपर कास्ट के हिंदुओं को ही हायर किया ताकि उनके बिस्किट्स कास्ट कॉन्शियस हिंदुओं की नजर में भी एक्सेप्टेबल हो सके पहले ही साल में कंपनी ने अपने बिस्किट्स का एडवर्टाइजमेंट दिया जिसमें बताया गया था कि बिस्किट्स की बेकिंग से लेकर पैकेजिंग तक का पूरा काम सिर्फ अपर क्लास हिंदुओं के हाथों से ही किया जाता है साथ ही बिस्किट्स को सिर्फ.

दूध से तैयार किया जाता है और पानी का एक भी कतरा नहीं मिलाया जाता लेकिन हिंदू बिस्किट्स की बढ़ती हुई पॉपुलर के बाद से कई और लोगों ने भी इस नाम के बिस्किट्स को बेचना शुरू कर दिया जिससे कि असली हिंदू बिस्कुट को काफी नुकसान हुआ और वह ब्रिटानिया कंपनी के साथ में मर्ज हो गया हालांकि दोस्तों मार्केट में इतनी सारी कॉपीज आने के बाद भी बिस्किट्स के प्राइस.

में कभी भी इतनी कमी नहीं आई कि वह गरीब के हाथों में पहुंच पाए फिर आया 7 अगस्त 1905 का दिन जब गांधी जी के नेतृत्व में स्वदेशी आंदोलन की नीव रखी गई और लोगों ने विदेशी चीजों का बायकॉट करके अपने देश में बनी हुई चीजों को अपनाना शुरू कर दिया साथ ही इस मोमेंट को सपोर्ट करने के लिए कई भारतीय लोगों ने लोकल बिजनेसेस भी शुरू किए ताकि फॉरेन प्रोडक्ट्स पर डिपेंडेंसी.

को कम किया जा सके और दोस्तों इसी बीच गुजरात के एक टेलर मोहनलाल दयाल जी भी इस आंदोलन से इतने प्रभावित हुए कि उन्होंने भी स्वदेशी आंदोलन में उतरने की इच्छा जताई जिसके लिए उन्होंने सोचा कि क्यों ना देश में अपनी खुद की टॉफी और चॉकलेट की कंपनी खोली जाए क्योंकि इसके जरिए वो अंग्रेजों को फाइनेंशली नुकसान तो पहुंचा ही सकते थे साथ ही इन टॉफीस का टेस्ट उन.

गरीब बच्चों तक भी पहुंचा सकते थे जो कि इसे अमीर बच्चों के हाथों में देखकर सिर्फ ललचा कर रह जाते थे लेकिन यहां पर सबसे बड़ा सवाल था कि आखिर इन टॉफीस को बनाए कैसे क्योंकि उस टाइम तक इंडिया में कोई भी ऐसा रिसोर्स अवेलेबल नहीं था जहां से वह इसे बनाने का तरीका सीख सके इसीलिए मोहनलाल दयाल ने एक बहुत बड़ा फैसला लिया और इस काम को सीखने के लिए 1929 में.

जर्मनी चले गए कुछ समय तक वहां उन्होंने टॉफी मेकिंग टेक सीखी और जब इंडिया वापस आने लगे तो अपने साथ एक टॉफी बनाने वाली मशीन भी लेकर आए मोहनलाल दयाल ने वापस आने के बाद से मुंबई के विले पार्ले इलाके में एक पुरानी बंद पड़ी फैक्ट्री को खरीदा और यहीं पर अपनी मशीनस को फिट किया शुरुआत में कंपनी में सिर्फ 12 लोग काम करते थे जो कि मोहन लाल के फैमिली मेंबर्स ही थे.

और अपनी कैपेबिलिटीज के अकॉर्डिंग इनमें से किसी ने मैनेजर का पद संभाल लिया किसी ने टॉफी मेकर का और कोई पैकेजिंग एंड सप्लाई को देखने लगा अब शुरुआत में किसी ने भी इस बात पर ध्यान नहीं दिया या कि कंपनी का कोई नाम भी होना चाहिए और इसीलिए काफी समय के बाद इसकी लोकेशन यानी विले पार्ले के नाम पर ही कंपनी का नाम पार्ले रखा गया इस कंपनी का पहला प्रोडक्ट था एक.

ऑरेंज कैंडी जो कि उस टाइम पर काफी पॉपुलर हुआ था लेकिन दोस्तों मार्केट में अफोर्डेबल बिस्किट्स ना होने की वजह से मोहनलाल दयाल ने इस गैप को फिल करने की सोची और साल 1939 में पर्ले ने पहली बार अपने बिस्किट्स को मार्केट में उतारा जिसका नाम रखा गया था पर्ले ग्लूको सस्ते दाम और अच्छे क्वालिटी की वजह से यह बिस्किट बहुत जल्द लोगों के बीच काफी.

पॉपुलर हो गया और सेकंड वर्ल्ड वॉर के दौरान भी इंडियन एंड ब्रिटिश दोनों ही आर्मी ने इस बिस्किट को खूब कंज्यूम किया था जब 1947 में भारत आजाद हुआ तो उस समय अचानक से गेहूं की कमी हो गई जिसके चलते पार्ले को अपने ग्लूको बिस्किट के प्रोडक्शन को रोकना पड़ गया क्योंकि इसका मेन इंग्रेडिएंट्स बने हुए बिस्किट्स बनाना शुरू किया और एक.

एडवर्टाइजमेंट में स्वतंत्रता सेनानियों को नमन करते हुए अपने कंज्यूमर से अपील की कि जब तक गेहूं की सप्लाई नॉर्मल नहीं हो जाती तब तक जॉ से बने बिस्किट्स का इस्तेमाल करें खैर बाद में हालात नॉर्मल हो गए और पर्ले फिर से जॉ की जगह गेहूं का इस्तेमाल करने लगा अब अगले कुछ सालों तक तो सब कुछ ठीक-ठाक चलता रहा लेकिन 1960 के करीब कई सारी और भी कंपनीज ने ग्लूको.

बिस्किट के नाम से ही अपने बिस्किट्स को लॉन्च करना शुरू कर दिया अब इससे कंज्यूमर के बीच में कंफ्यूजन बढ़ने लगी कि आखिर ओरिजिनल ग्लूको बिस्किट है कौन सा और यही वजह थी कि इस टाइम पर पार्ले की सेल्स ल लगातार गिर रही थी लेकिन दोस्तों अपनी गिरते हुए सेल्स को देखते हुए कंपनी ने एक बहुत ही स्ट्रेटेजिक मूव लिया और अपनी ब्रांडिंग को इंप्रूव करने के लिए काम.

करने लगे इसके लिए सबसे पहले तो इन्होंने नई पैकेजिंग बनाने का फैसला किया जिसके बाद से पार्ले का बिस्किट एक पीले वैक्स पेपर में लपेट कर आने लगा इसके ऊपर लाल रंग की पारले ब्रांडिंग के साथ-साथ एक छोटी लड़की की तस्वीर भी लगी थी और इस लड़की के इलस्ट्रेशन को एडवरटाइजिंग एजेंसी एवरेस्ट ब्रांड सॉल्यूशन के मगनलाल दैया ने तैयार किया था इस नई ब्रांडिंग ने.

बच्चों और उनके पेरेंट्स को खूब अट्रैक्ट किया साथ ही बाकी के ब्रांड्स के बीच पार्ले अपनी एक अलग छाप छोड़ने में भी कामयाब हो गया इसके बाद से साल 1982 में कंपनी ने पर्ले ग्लूको को पर्ले जी के रूप में रीपैकेज किया जिसमें जी का मतलब था ग्लूको और इसी साल यानी 1982 में ही पार्ले जी का पहला टीवी कमर्शियल आया जिसमें एक दादाजी अपने नाती पोतों के साथ.

गाते हुए नजर आ रहे थे स्वाद भरे शक्ति भरे पारले जी से चाहत अपनी यही है जी अपनी भी सा भरे शक्ति भरे रसों से पार्ले जी इसके बाद से 1998 में पार्ले जी को शक्तिमान के रूप में ब्रांड एंडोर्सर मिला और अगर आप 90स के किड हैं तो फिर यह बताने की जरूरत ही नहीं कि बच्चों के बीच शक्तिमान कितना ज्यादा पॉपुलर था ऐसे में अपने फेवरेट सुपर हीरो शक्तिमान की वजह से.

बच्चों में पार्ले जी खूब पसंद किया जाने लगा इसके बाद से जी मने जीनियस हिंदुस्तान की ताकत रोको मत टोको मत जैसी टैगलाइन ने पर्ले जी को हमेशा चर्चे में बनाकर रखा अब दोस्तों आज के टाइम पर पार्ले का एक बहुत बड़ा पोर्टफोलियो है जिसके अंडर कई तरह के बिस्किट्स कैंडीज और नमकीन आते हैं और काफी सारे लोगों को लगता है कि बिसलरी बेली फ्रूटी और एप्पल फिश भी पारले के ही.

अंडर आता है लेकिन क्या सच में ऐसा है अब इसे समझने के लिए पहले हमें मोहन लाल जी के परिवार को एक बार देखना होगा एक्चुअली मोहन लाल जी के पांच बेटे थे जिनमें से बड़े बेटे जयंती लाल चौहान ने पारिवारिक बिजनेस से अलग होने का फैसला किया और उन्होंने पर्ले एग्रो शुरुआत की और आज बेली फ्रूटी और एप्पी फीज जैसे पॉपुलर प्रोडक्ट्स इसी कंपनी के अंडर आते हैं.

1970 के दौरान जयंतीलाल चौहान ने अपने इस बिजनेस को अपने दो बेटों प्रकाश चौहान और रमेश चौहान में स्प्लिट कर दिया था जिसके बाद से पार्ले एग्रो प्रकाश चौहान के हाथों में आ गई और रमेश चौहान के अंडर बिसलरी ब्रांड आता है इस तरह से जयंतीलाल चौहान के परिवार से अलग होने के बाद पर्ले प्रोडक्ट्स के मालिक बने मोहन लाल जी के चार बेटे मानिक लाल पितांबर नरोत्तम और.

कांतिलाल चौहान अब दोस्तों शुरुआत में तो पले अपने सस्ते और अच्छे क्वालिटी की वजह से बिस्किट मार्केट को पूरी तरह से डोमिनेट कर रहा था लेकिन हैरानी की बात तो यह है कि करंट सिनेरियो में भी पर्ले का इंडिया में 40 पर से ज्यादा मार्केट शेयर है जो कि किसी भी बिस्किट ब्रांड में सबसे ज्यादा है ऐसे में यह जानना काफी इंटरेस्टिंग है कि करीब 100 साल बाद भी.

मार्केट को डोमिनेट करने के लिए पर्ले ने कौन-कौन से टैक्टिक्स को अपनाया तो दोस्तों असल में कंपनी के पास पार्ले जी के रूप में एक हीरो प्रोडक्ट तो है ही लेकिन इसमें मिली भारी सफलता के बावजूद कभी भी यह हाथ पर हाथ रखकर नहीं बैठे कंपनी ने बहुत पहले ही मार्केट पर रिसर्च करके लोगों की पसंद और नापसंद को समझना शुरू कर दिया था जब इन्होंने अपने पर्ले.

ग्लूको बिस्किट को लॉन्च किया था तो उसी दौरान उन्हें एहसास हो गया था कि जरूरी नहीं है कि मीठी चाय के साथ हर किसी को मीठे बिस्किट से पसंद आए बल्कि काफी सारे लोग चाय से नमकीन खाना पसंद करते हैं इसीलिए 1938 में पार्ले ने मोनाको बिस्किट को भी लॉन्च कर दिया था बच्चों और यंगस्टर्स को अट्रैक्ट करने के लिए 1956 में कंपनी ने पार्ले चीज लिंगस को भी.

लॉन्च किया था जो कि एक बहुत यूनिक प्रोडक्ट था और इसके छोटे-छोटे स्क्वायर शेप वाले नमकीन उस टाइम पर खूब पॉपुलर हुए थे इसके बाद से 1963 में पार्ले अपनी टॉफी लेकर आया किस्मी जिसे आप में से भी काफी सारे लोगों ने खाया ही होगा 1966 में पर्ले ने पॉपिंस को लॉन्च किया जिसकी रंगबिरंगी कैंडीज बच्चों के बीच खूब पसंद की गई इसके अलावा पर्ले ने मेलोडी क्रैक.

जैक 2020 मैजिस मिल्क शक्ति मैंगो बाइट लंडन डेरी और हाइड एंड सीक की तरह ही कई सारे प्रोडक्ट्स को मार्केट में उतारा जो कि काफी पसंद किए गए और इनके मदद से पार्ले इंडिया के बिस्किट मार्केट पर अपना कब्जा जमाने में कामयाब हो गया साल 2012 तक पर्ले 40 लाख दुकानों के जरिए अपने प्रोडक्ट्स को बेचा करता था और 2013 में पर्ले जी का टर्न ओवर 000 करोड़ से भी.

ज्यादा का हो गया था और दोस्तों कोरोना के टाइम पर जो लॉकडाउन हुआ था उसमें भी पार्ले जी को बहुत ज्यादा फायदा मिला और कंपनी का टर्नओवर बढ़कर 88000 करोड़ को भी क्रॉस कर गया आज पर्ले जीी वर्ड वर्ल्ड का लार्जेस्ट सेलिंग बिस्किट ब्रांड है जो हर महीने 1 अरब बिस्किट्स के पैकेट्स बनाता है और हर एक सेकंड में ऑन एन एवरेज 4551 पारलेजी के पैकेट्स कंज्यूम कर लिए जाते.

हैं तो दोस्तों एक टाइम पर पलेज के बिस्किट्स की डिमांड इतनी ज्यादा बढ़ गई थी कि कंपनी उतने बिस्किट्स बना ही नहीं पा रही थी ऐसे में पर्ले ने एक बहुत ही स्मार्ट डिसीजन लेते हुए लोकल बेकरीज के साथ में हाथ मिला लिया इसके बाद से कंपनी ने उन बेकरीज को अपने बिस्किट्स का सीक्रेट फार्मूला दे दिया जिसकी वजह से बिस्किट्स की बेकिंग को लेकर कंपनी से लोड.

तो कम हुआ ही साथ ही ऑटोमेटिक एक स्ट्रांग सप्लाई चैन भी क्रिएट हो गई क्योंकि जिस दुकान से पर्ले बिस्किट्स खत्म होते थे वहां उनके नियरेस्ट बेकरी से तुरंत ही नए पैकेट्स पहुंचा दिए जाते थे अब यह स्ट्रेटजी कुछ समय तक तो बहुत अच्छी काम करती रही लेकिन बाद में जब मैसिव ऑर्डर्स आने लगे तो फिर कंपनी का ध्यान प्रोडक्शन बढ़ाने पर ज्यादा रहने लगा अब दोस्तों.

ज्यादा प्रोडक्शन के लिए उन्हें ज्यादा रॉ मैटेरियल्स की जरूरत थी जिसे बल्क में परचेस करने पर काफी डिस्काउंट मिल जाता था और दोस्तों कुछ इसी तरह का फ पार्ली जी को भी मिला और बल्क प्रोडक्शन के बाद में उनका प्रॉफिट बहुत ज्यादा इंक्रीज हो गया अब मार्केट में बहुत बड़ी संख्या में ऐसे लोग थे जो कि पार्ले जी के दीवाने थे और शॉपकीपर्स भी स्टॉक खत्म होने के पहले ही.

ऑर्डर देने के लिए परेशान हो जाते थे इन बिस्किट्स की डिमांड जिस तेजी से इंक्रीज हो रही थी इनकी जगह कोई दूसरी कंपनी होती तो पहला काम यही करती कि सबसे पहले अपने प्रोडक्ट के प्राइस को बढ़ा देती लेकिन पर्ले जी ने ऐसा नहीं किया आज से 85 साल पहले यह अपने शुरुआती समय में भी सबसे सस्ता बिस्किट था और आज भी सबसे सस्ता ही है और कमाल की बात तो यह है कि पिछले 25.

सालों में महंगाई कहां से कहां पहुंच गई है जैसे कि 1998 999 में पेट्रोल की प्राइस ₹2500000 पार्ली जी ने ₹ 56 करोड़ का प्रॉफिट जनरेट किया था तो असल में दोस्तों पार्लेज बिस्किट के प्राइस तो बढ़ रहे हैं लेकिन इतने साइलेंटली कि कंज्यूमर को एहसास भी नहीं होता है एक्चुअली कंपनी बहुत अच्छे से समझती है कि कंज्यूमर्स को.

एक्स्ट्रा पैसे देना बिल्कुल पसंद नहीं है क्योंकि एक बार जब इन्होंने अपने बिस्किट पर सिर्फ 50 पैसे बढ़ाए थे तो फिर इनकी सल ड्रा किली ड्रॉप होने लगी और लोग सड़क पर उतरकर प्रोटेस्ट भी करने लगे थे ऐसे में पर्ली जी के मैनेजमेंट टीम ने यह डिसाइड किया कि वह बिस्किट के प्राइस को नहीं बढ़ाएंगे बल्कि उसकी क्वांटिटी को कम करते जाएंगे इसीलिए पहले जहां ₹ में पार्ले जीी.

के 100 ग्राम का पैकेट मिल जाता था वही आज ₹ में सिर्फ 55 ग्राम ही मिल पाता है अब देखा जाए तो पार्ली जीी कंपनी का एक हीरो प्रोडक्ट है जो देश के हर कोने में छोटी से छोटी दुकान में भी आसानी से मिल जाता है पर्ली जीी के इस स्ट्रांग डिस्ट्रीब्यूशन की वजह से जब भी कंपनी किसी नए प्रोडक्ट को लॉन्च करती है तो फिर उसे भी मार्केट में काफी तेजी से पहुंचा.

देती है इस तरह से बिना ज्यादा मेहनत के उसके नए प्रोडक्ट्स को भी एक्सपोजर मिल ने लगता है और उनके जरिए कंपनी की खूब कमाई होती है लेकिन दोस्तों क्या पार्ले जी का बोलबाला सिर्फ इंडिया में ही है तो इसका जवाब है बिल्कुल नहीं क्योंकि यूएसए यूके कनाडा ऑस्ट्रेलिया और न्यूजीलैंड जैसी कई सारी ऐसी कंट्रीज हैं जहां पर्ले जी को बहुत ज्यादा पसंद किया जाता है और तो और.

कई सारे देशों में तो इसकी मैन्युफैक्चरिंग यूनिट्स भी अवेलेबल हैं साथ ही हम इंडियंस की तरह ही चाइनीज भी इस बिस्किट के दीवाने हैं इसीलिए पारलेजी चाइना में भी सबसे ज्यादा बेचे जाने वाला बिस्किट बन गया है तो दोस्तों पारलेजी के साथ आपकी किस तरह की यादें जुड़ी हैं हमें कमेंट करके जरूर बताइएगा

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